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Vodafone Idea Newsसुप्रीम कोर्ट ने दी वोडाफोन आइडिया को बड़ी राहत, केंद्र को ₹9,450 करोड़ के एजीआर बकाया पर पुनर्विचार की अनुमति

Vodafone Idea Newsसुप्रीम कोर्ट ने दी वोडाफोन आइडिया को बड़ी राहत, केंद्र को ₹9,450 करोड़ के एजीआर बकाया पर पुनर्विचार की अनुमति

Vodafone Idea News: टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया (Vodafone Idea) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने केंद्र सरकार को कंपनी के ₹9,450 करोड़ के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया पर पुनर्विचार की अनुमति दी है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला केंद्र की नीतिगत सीमा (policy domain) में आता है और सरकार इस पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

What is AGR and Why It Matters

AGR (Adjusted Gross Revenue) एक राजस्व साझेदारी तंत्र है, जिसके तहत टेलीकॉम कंपनियों को अपने राजस्व का एक हिस्सा सरकार को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के रूप में देना होता है।

वर्षों से सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच इस बात पर विवाद चला आ रहा था कि AGR में कौन-सा राजस्व शामिल किया जाए

  • कंपनियों का कहना था कि केवल टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय को ही शामिल किया जाए।

  • जबकि सरकार का तर्क था कि गैर-टेलीकॉम सेवाओं से हुई आय को भी जोड़ा जाना चाहिए।

2019 का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

  • 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की परिभाषा को सही ठहराते हुए कंपनियों से ₹92,000 करोड़ वसूलने की अनुमति दी थी।
  • यह फैसला वोडाफोन और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका साबित हुआ था। (Vodafone Idea News)

Vodafone’s नई याचिका

  • वोडाफोन आइडिया ने हाल ही में दायर याचिका में कहा कि दूरसंचार विभाग (DoT) ने ₹9,450 करोड़ का नया AGR डिमांड नोटिस जारी किया है।
  • कंपनी का दावा है कि इसका बड़ा हिस्सा 2017 से पहले की अवधि से जुड़ा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही सेटल कर चुका है

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Government’s Stand and Court’s Observation

  • सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि इस मामले में परिस्थितियां बदल चुकी हैं क्योंकि सरकार ने अब वोडाफोन में इक्विटी निवेश किया है।
  • उन्होंने कहा, “सरकार का हित जनता का हित है। वोडाफोन के 20 करोड़ ग्राहक हैं।
  • यदि कंपनी प्रभावित होती है, तो इसका असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।”

कोर्ट ने यह कहते हुए केंद्र को पुनर्विचार की अनुमति दी –

“यह मामला नीतिगत है और इसमें केंद्र सरकार के पुनर्विचार करने में कोई बाधा नहीं है। इसीलिए सरकार चाहें तो इस पर दोबारा निर्णय ले सकती है।”

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