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Nuclear Energy Revolution: जानिए कैसे बदला चीन ने थोरियम को यूरेनियम में, क्या होंगे इसके फायदे और भारत पर इसका असर…

Nuclear Energy Revolution: जानिए कैसे बदला चीन ने थोरियम को यूरेनियम में, क्या होंगे इसके फायदे और भारत पर इसका असर...

Nuclear Energy Revolution: दुनिया को हैरान कर देने वाली उपलब्धि के तहत चीन ने गोबी रेगिस्तान के वुवेई स्थित 2 मेगावॉट थोरियम मॉल्टन-सॉल्ट रिएक्टर (TMSR-LF1) में थोरियम को यूरेनियम में बदलने का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. यह सफलता इस बात का संकेत है कि अब थोरियम को सुरक्षित, स्वच्छ और उपयोगी परमाणु ईंधन में बदला जा सकता है. इस खोज के बाद वैश्विक स्तर पर थोरियम को भविष्य के ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जा रहा है.

कैसे होता है थोरियम से यूरेनियम में बदलाव?

  • थोरियम-232 अपने आप विखंडन (Fission) नहीं करता — यह “उपजाऊ नाभिक” (Fertile Nucleus) है.
  • जब इसे न्यूट्रॉनों की बौछार में रखा जाता है, तो यह थोरियम-233 बनता है, जो कुछ ही मिनटों में बीटा क्षय से प्रोटैक्टिनियम-233 में बदलता है.
  • लगभग 27 दिनों के भीतर यह आगे यूरेनियम-233 में परिवर्तित हो जाता है — जो एक विभाज्य (Fissile) नाभिक है.
  • यूरेनियम-233 के विखंडन से ऊर्जा, विकिरण और नए न्यूट्रॉन बनते हैं. ये न्यूट्रॉन फिर नए थोरियम परमाणुओं को सक्रिय करते हैं.
  • यह “थोरियम ईंधन चक्र” (Thorium Fuel Cycle) कहलाता है — जिसमें रिएक्टर खुद अपना ईंधन तैयार करता रहता है.

थोरियम प्रोजेक्ट की शुरुआत कब हुई थी?

थोरियम को परमाणु ऊर्जा में बदलने की अवधारणा 85 साल पहले शुरू हुई थी:

  • 1940 के दशक: अमेरिकी वैज्ञानिक अल्विन वाइनबर्ग ने मॉल्टन-सॉल्ट रिएक्टर का खाका तैयार किया.

  • 1965-69: अमेरिका में MSRE प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि तरल नमक माध्यम उच्च तापमान पर भी सुरक्षित रहता है.

  • भारत: डॉ. होमी भाभा के तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम में थोरियम का महत्वपूर्ण स्थान है.

  • चीन: 2011 में इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय वैज्ञानिक मिशन घोषित किया गया और 2025 में सफलता की घोषणा की गई.

क्यों है चीन की सफलता दुनिया के लिए खास?

चीन के पास लगभग 14 लाख टन थोरियम भंडार है, जो रेअर-अर्थ खनन से प्राप्त होता है. इसलिए चीन ने गोबी रेगिस्तान में ऐसा रिएक्टर बनाया जो पानी पर निर्भर नहीं है — क्योंकि मॉल्टन-सॉल्ट रिएक्टर को कूलिंग के लिए पानी की जरूरत नहीं होती.

इसके फायदे:

  • ऑनलाइन रिफ्यूलिंग संभव है – रिएक्टर को बंद किए बिना ईंधन बदला जा सकता है.

  • कम रेडियोधर्मी कचरा बनता है.

  • फ्यूल एफिशिएंसी कई गुना बढ़ जाती है.

मानवता के लिए इस खोज के प्रमुख फायदे

1️⃣ ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security)

  • थोरियम, यूरेनियम से 3 से 4 गुना ज्यादा उपलब्ध है.
  • भारत, चीन, ब्राजील और नॉर्वे जैसे देशों में इसके विशाल भंडार हैं.
  • इसका अर्थ है स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा की दिशा में एक स्थायी समाधान. (Nuclear Energy Revolution)

2️⃣ सुरक्षा और कम रेडियो कचरा

  • मॉल्टन-सॉल्ट रिएक्टर वायुमंडलीय दबाव पर काम करता है — इसलिए भाप विस्फोट का खतरा नहीं.
  • यूरेनियम-233 चक्र में कम ट्रांसयूरैनिक तत्व बनते हैं, जिससे रेडियो कचरा लगभग 10 गुना कम होता है.

3️⃣ हथियार निर्माण रोकथाम

  • यूरेनियम-233 में स्वतः यूरेनियम-232 अशुद्धि मिलती है, जो तेज गामा किरणें छोड़ती है.
  • इससे किसी भी देश के लिए इसका सैन्य दुरुपयोग करना कठिन हो जाता है.

4️⃣ उद्योगों को मिलेगा नया बूस्ट

700°C तक के आउटपुट से सीधे हाइड्रोजन उत्पादन, समुद्री जल शोधन और रासायनिक संयंत्रों में उपयोग किया जा सकता है.

5️⃣ भविष्य के अनुप्रयोग

छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर आने वाले समय में द्वीपों, आर्कटिक स्टेशनों और यहां तक कि चंद्र-आधारों पर भी लगाए जा सकेंगे.

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अब भी बाकी हैं कुछ तकनीकी चुनौतियां

  • फ्लोराइड सॉल्ट 800°C पर धातुओं को नुकसान पहुंचाता है. (Nuclear Energy Revolution)

  • चीन ने इस चुनौती को हल करने के लिए निकेल-आधारित N-Hastelloy विकसित किया है.

  • अभी भी ऑटोमेटेड रेडियो-सुरक्षित सिस्टम पर काम जारी है.

  • चीन का लक्ष्य है कि 2035 तक 100 मेगावॉट का प्रदर्शन रिएक्टर और 2050 तक वाणिज्यिक रिएक्टर तैनाती हो सके.

भारत के लिए क्या मायने रखता है यह आविष्कार?

  • भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा मोनाज़ाइट तटीय रेत भंडार है — जिसमें थोरियम की भारी मात्रा पाई जाती है.
  • विशेषज्ञों के अनुसार, अगर चीन की यह तकनीक व्यावहारिक रूप से स्थिर साबित होती है, तो भारत का त्रिस्तरीय परमाणु कार्यक्रम तेज़ी से अपने तीसरे चरण में पहुंच सकता है.

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