Gandhi Jayanti: हर साल 2 अक्टूबर को देशभर में गांधी जयंती मनाई जाती है। सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि संदेश, हैशटैग्स और गांधी के विचारों को लेकर बहसें तेज हो जाती हैं। लेकिन जहां अधिकतर लोग केवल 30 जनवरी 1948 को हुए गांधीजी की हत्या को जानते हैं, वहीं यह सच है कि महात्मा गांधी पर इससे पहले भी 5 बार जानलेवा हमले हुए थे, जिनसे वे बाल-बाल बचे।
पहला हमला: पुणे, 1934 – कार में बम धमाका
1934 में गांधी और कस्तूरबा पुणे में भाषण देने जा रहे थे। तभी उनकी कार रेलवे क्रॉसिंग पर थोड़ी देर के लिए रुक गई। उसी समय आगे चल रही कार पर तेज धमाका हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए। गांधीजी ने दुख जताते हुए कहा था –
“मुझे मारना आसान है, पर निर्दोषों को क्यों नुकसान पहुंचाना?”
दूसरा हमला: पंचगनी, 1944 – नाथूराम गोडसे का खंजर
1944 में पंचगनी की प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे हाथ में खंजर लेकर गांधीजी पर टूट पड़ा। समर्थकों ने समय रहते उसे रोक लिया। गांधीजी ने गोडसे को अपने साथ 8 दिन रुकने का निमंत्रण भी दिया, पर गोडसे ने इंकार कर दिया। इतिहास ने केवल हत्या की तारीख को आगे खिसका दिया।
तीसरा हमला: जिन्ना से बातचीत, 1944
जब गांधीजी जिन्ना से बातचीत के लिए मुंबई गए, तब भी गोडसे और उसके साथी हथियार लेकर उनके आश्रम पर पहुंचे। प्रत्यक्षदर्शियों ने गोडसे के पास से खंजर मिलने की गवाही दी। यह गांधीजी और उनके भावी हत्यारे का दूसरा आमना-सामना था।
चौथा हमला: ट्रेन में तोड़फोड़, 1946
जून 1946 में “गांधी स्पेशल” ट्रेन को पटरी से उतारने की साजिश रची गई। पटरियों पर बड़े-बड़े पत्थर रख दिए गए थे। ड्राइवर की समझदारी से ट्रेन धीमी हो गई और एक बड़ा हादसा टल गया। गांधीजी ने कहा था –
“ईश्वर की कृपा से मैं मौत के जबड़े से बच निकला हूं। मेरी उम्र अभी खत्म नहीं हुई।”
पाँचवां हमला: बिरला भवन बमकांड, 1948
हत्या से मात्र 10 दिन पहले, गोडसे और उसके साथियों ने दिल्ली में गांधीजी की सभा में बम फोड़ने की कोशिश की। साजिशकर्ता मदनलाल पाहवा ने कैमरे का बहाना बनाकर बम रखा, लेकिन वह कमजोर धमाका साबित हुआ और लोग उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर बैठे। इस साजिश के बाद गोडसे ने गोली मारकर हत्या करने का प्लान बनाया। (Gandhi Jayanti)
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अंतिम दिन: 30 जनवरी 1948
शाम 5:17 पर नाथूराम गोडसे ने गांधीजी को नजदीक से तीन गोलियां मारीं। बापू गिरते समय भी मुस्कुराए और उनके शब्द थे –
“यदि किसी पागल की गोली से मरना है तो मुस्कुराकर मरूंगा।”
गांधीजी की विरासत
गांधीजी पर हुए ये पाँच असफल हमले हमें बताते हैं कि उनका जीवन केवल संघर्ष नहीं बल्कि सहनशीलता, संवाद और अहिंसा की अदम्य शक्ति का प्रतीक था। भले ही वे गोली से मारे गए, लेकिन उनके विचार आज भी जीवित हैं और आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाते हैं।
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