Diwali Aghori Sadhana 2025: क्या आप जानते हैं दिवाली की रात जहां आम लोग लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं, वहीं अघोरी श्मशान में महाकाली की साधना में लीन रहते हैं। आइए जानें, क्या है इसके पीछे का रहस्य…
दिवाली 2025 की तिथि और महत्व
- Diwali 2025 Date: इस साल दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।
- यह पर्व कार्तिक अमावस्या के दिन आता है और पांच दिनों तक चलता है — जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर होता है।
- इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा कर समृद्धि और सौभाग्य की कामना की जाती है।
लेकिन अघोरी करते हैं श्मशान में किस देवी की पूजा?
- जहां आम लोग घरों में दीप जलाकर लक्ष्मी-गणेश की आराधना करते हैं, वहीं अघोरी और तांत्रिक इस दिन श्मशान घाटों में विशेष तंत्र साधना करते हैं।
- दिवाली की रात अमावस्या की होती है — यानी चंद्रमा का प्रकाश पूरी तरह से अनुपस्थित।
- ऐसा माना जाता है कि इस समय तांत्रिक शक्तियां सबसे अधिक सक्रिय रहती हैं।
अघोरी करते हैं महाकाली की साधना
- अघोरी इस रात मां महाकाली की पूजा और साधना करते हैं।
- श्मशान में मंत्रोच्चारण, अग्नि, और शव साधना के साथ वे सिद्धि प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
- उनका मानना है कि तंत्र की वास्तविक शक्ति मां काली से ही प्राप्त होती है।
- इस दिन वे महाकाल और काली दोनों की आराधना करते हैं ताकि आध्यात्मिक और तांत्रिक शक्तियों की प्राप्ति हो सके।
काशी के मणिकर्णिका घाट का रहस्यमय दृश्य
- दिवाली की रात काशी के मणिकर्णिका घाट पर ऐसा नजारा देखने को मिलता है जिसे देखकर कोई भी साधारण व्यक्ति भयभीत हो सकता है।
- यहां अघोरी नरमुंडों के बीच खून से नहाते हैं, जलती चिताओं के बीच एक पैर पर खड़े होकर साधना करते हैं।
- कहा जाता है कि इस रात बाबा औघड़ दानी महादेव स्वयं महाश्मशान में विराजते हैं और अघोरियों को आशीर्वाद देते हैं।
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उज्जैन की तांत्रिक आरती और तामसिक साधना
- महाकाल की नगरी उज्जैन में भी दिवाली की रात कुछ इसी तरह की साधना होती है।
- यहां अघोरी नरमुंडों में भरे खप्परों से आरती करते हैं और लगभग 40 मिनट तक तांत्रिक क्रियाएं संपन्न होती हैं। (Diwali Aghori Sadhana 2025)
धार्मिक ग्रंथों में तंत्र साधना का उल्लेख
- वेद-पुराणों और रामचरितमानस में इस तरह की तंत्र साधनाओं को गृहस्थ जीवन के लिए वर्जित बताया गया है।
- धर्मग्रंथों में कहा गया है कि साधारण व्यक्ति को ऐसी तामसिक साधनाओं से दूर रहना चाहिए और केवल सात्त्विक पूजा-पाठ ही करना चाहिए।
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