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Bomb Movie Review: अर्जुन दास और काली वेंकट की एंटी-सेक्टेरियन ड्रामा फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी…

Bomb Movie Review: अर्जुन दास और काली वेंकट की एंटी-सेक्टेरियन ड्रामा फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी...

फिल्म की शुरुआत – उम्मीदें जगाती कहानी

डायरेक्टर विशाल वेंकट की दूसरी फिल्म Bomb की शुरुआत एक मज़बूत सोशल सटायर की तरह होती है। कहानी की झलक Mandela फिल्म जैसी लगती है, लेकिन बीच-बीच में इसमें Swiss Army Man का ट्विस्ट देखने को मिलता है। फिल्म का बैकड्रॉप है काला कम्मैपट्टी, एक ऐसा गांव जो कभी समृद्धि के लिए अपने देवता पर विश्वास करता था। लेकिन एक पवित्र शिला के टूटने के बाद गांव दो हिस्सों – काला पट्टी और कम्मै पट्टी – में बंट गया और कट्टरता बढ़ती चली गई।

कहानी का अनोखा मोड़

वर्तमान में गांव गुटबाजी और धार्मिक कट्टरता का प्रतीक बन चुका है। IAS अधिकारी (अभिरामी) जैसी सरकारी कोशिशें भी यहां नाकाम हो जाती हैं। इसी बीच आता है सबसे विचित्र मोड़ – काली वेंकट (कथिरवन), जो शराबी और नास्तिक है, की मौत हो जाती है। लेकिन उसका शव गांव के लोगों के लिए “देवता की वापसी का संकेत” बन जाता है। शव की अजीब हरकतें (जैसे बीच-बीच में गैस निकलना) फिल्म के टाइटल का कारण भी बनती हैं।

मुख्य किरदार और ड्रामा

  • अर्जुन दास (मणिमुथु) – कथिरवन का दोस्त, जो मानता है कि उसका साथी अब भी जिंदा है।

  • शिवात्मिका राजशेखर (प्रभा) – कथिरवन की बहन, जिसकी चुप्पी कहानी का असली रहस्य छुपाती है।

  • नास्सर और अभिरामी – सहायक भूमिकाओं में प्रभाव छोड़ते हैं।

दोनों समुदाय शव को लेकर आपस में भिड़ते हैं और यहीं से फिल्म का मुख्य ड्रामा शुरू होता है।

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फिल्म का प्लॉट और कमजोरियां

  • फिल्म की लंबाई 139 मिनट है।

  • पहले हाफ में व्यंग्य और सामाजिक संदेश को मिलाकर दिलचस्प माहौल बनाया गया है।

  • लेकिन दूसरे हाफ में कहानी बिखरने लगती है और ड्रामा बोझिल महसूस होता है।

  • निर्देशक का विचार साहसी है, लेकिन स्क्रीनप्ले इसे पूरी तरह पकड़ नहीं पाता।

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